Thursday, 3 January 2019

In Indian secularism, even the thought of ​​Hindu-interest is forbidden? भारतीय धर्मनिरपेक्षता में क्या हिन्दू-हित की सोच भी वर्जित है?

 

In Indian secularism, even the thought of ​​Hindu-interest is forbidden?


This is the first time there is an impression that Indian Government has failed to be vigilant to the outrage the Hindus perceive to be suffering at the hands of the Legislature, the Executive and the Judiciary which they are no longer willing to ignore or overlook.

The biggest challenge before the government and society – and one need to be careful not to overstretch oneself – is dealing with the Hindu emotion. Indian Government has lost control, perhaps because they are afraid of discussing unpopular facts and of making sure that that this country's capacity to tolerate the majority-punching in the name of minority-safeguard is not exceeded.

What a propagation of an understanding of secularism in a Hindu-majority country, in which even the thought about Hindu-interest is a taboo and the country chooses to call itself ‘secular’ though its constitution keeping the expression undefined?

The spirit and the belief of the religious majority must not be a taboo in any society
______________________________

Hindi version follows: हिन्दी संस्करण आगे है:

_______________________________________________
Share the post with your friends and networks!!
You can follow the author on other sites –
_______________________________________________

भारतीय धर्मनिरपेक्षता में क्या हिन्दू-हित की सोच भी वर्जित है?

विधायिका, कार्यकारी और न्यायपालिका के हाथों पीड़ित और प्रताड़ित होने का अपना बोध, अनुभव व अपमान हिन्दू अब अनदेखा या उपेक्षा करने के इच्छुक नहीं हैं, और लगता है कि यह पहली बार है कि भारत सरकार इस हिंदू-क्षोभ के प्रति सतर्क व संवेदनशील रहने में असफल रही है। सभी को सावधान रहने की जरूरत है कि वह स्वयं इस तनाव को अधिक न बढ़ाएं।

सरकार और समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस हिंदू मनोभाव से निपटना है। शायद इसलिए कि वे अलोकप्रिय तथ्यों पर चर्चा करने से डरते हैं, तत्कालीन भारत सरकार ने स्तिथि पर नियंत्रण खो दिया है। यह सुनिश्चित करने में कि अल्पसंख्यकों के हितों और सुरक्षा के नाम पर बहुसंख्यकों का विभेदन-उत्पीड़न और यंत्रणा-छिद्रण को सहन करने की इस देश की क्षमता सीमित है, विधायिका, कार्यकारी और न्यायपालिका, अनभिज्ञ हैं।

हिंदू बहुसंख्यक देश में धर्मनिरपेक्षता की समझ का क्या अनूठा व व्यापक प्रचार है, जिसमें हिंदू-हित के बारे में विचार भी वर्जित है और संविधान के तहत स्वयं को 'धर्मनिरपेक्ष' कहने का विकल्प यह देश चुनता है, लेकिन इस अभिव्यक्ति को अपरिभाषित रखता है?

धार्मिक बहुमत का मनोभाव, श्रद्धा और विश्वास किसी भी समाज में एक वर्जना नहीं हो सकती।

_______________________________________________
अगर आपको पोस्टिंग पसंद है, तो पसंद (Like) करें!
कृपया पोस्ट को अपने दोस्तों और नेटवर्क के साथ साझा करें !!
आप लेखक का अंग्रजी ब्लॉग पर अनुसरण कर सकते हैं –
https://www.facebook.com/intheworldofideas/
_______________________________________________

Labels: , , ,

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home